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एमएसपी पर कानून है किसान आंदोलन का लक्ष्य

सुदीप पंचभैया।
किसान आंदोलन का असली लक्ष्य एमएसपी यानि फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून है। देश का किसान इसके लिए लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं और इसका ऐलान भी कर चुके हैं।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर करने वाले किसान आंदोलन का असली लक्ष्य एमएसपी पर कानून बनवाना है। ताकि बाजार में किसानो के साथ किसी प्रकार नाइंसाफी न हो। जल्द फसल बेचने की उसकी मजबूती का बाजार के खिलाड़ी लाभ न उठाएं।

देश में किसी फसल की एमएसपी सीएसीपी यानि कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस तय करती है। सीएसीपी की संस्तुति सरकार फसलों पर एमएसपी तय करती है। बंपर फसल होने की स्थिति में बाजार में कीमत घट जाती है। ऐसे स्थिति में एमएसपी किसानों के लिए संजीवनी जैसी होती है।

देश में करीब 22 फसलों की खरीद एमएसपी के तहत होती है। इसमें धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन, तिल और कपास आदि फसलें शामिल है। तीन नए कृषि कानूनों को संसद में पास कराते वक्त केंद्र सरकार बार-बार भरोसा देती रही है कि एमएसपी था, है और रहेगा।

बावजूद इसके किसानों को तीन नए कृषि कानून के आलोक में एमएसपी को धीरे-धीरे समाप्त करने का भया बना हुआ था। किसान तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने के साथ एमएसपी पर कानून बनाने की मांग करते रहे हैं।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान भी कर दिया। 29 नवंबर को संसद में उक्त कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। बावजूद इसके किसान आंदोलन समाप्त करने के लिए तैयार नहीं है।

दरअसल, तीन कृषि कानून की वापसी के लिए चले आंदोलन सात सौ से अधिक किसानों ने शहादत दी। किसानां का तर्क है कि सरकार ने किसान विरोधी कानूनों को वापस लिया। ये अच्छी बात है। किसानों की एमएसपी कानून की मांग तो अभी ज्यों की त्यों है।

बगैर एमएसपी कानून के किसानों को लाभ होने वाला नहीं है। मौजूदा एमएसपी व्यवस्था में किसानों को तमाम खोट नजर आते हैं। कहना है कि व्यवस्था एमएसपी के तहत ना के बराबर खरीद करती है। किसानों को बाजार के भरोसा छोड़ दिया जाता है। यही मौजूदा एमएसपी की हकीकत है।

यही वजह है कि एक साल से आंदोलनरत किसान हर हाल में अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं। यानि एमएसपी पर कानून चाहते हैं। तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेकर किसानों की नाराजगी दूर करने की सोच रही मोदी सरकार के लिए ये नई मुसीबत है।

ये बात किसी से छिपी नहीं है कि स्वतंत्रता के बाद से किसानों के हितों की हर राजनीतिक मंच पर वकालत हुई। आयोग बनें और समितियां गठित हुई। आकर्षक रिपोर्ट प्रस्तुत हुए। मगर, किसानों की हालात आज भी हालात ज्यों के त्यों ही हैं। किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं।आए दिन इस प्रकार के समाचार मिलते रहते हैं। अन्ना दाता की ये स्थिति चिंता की बात है। इस पर सरकार ही नहीं समाज को भी गौर करना होगा।

इस पूरे मामले पर राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो एमएसपी पर किसानों को ठोस आश्वासन और इस पर कानून की दिशा में कुछ होता नहीं दिखा तो भाजपा को कुछ माह बाद यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

यूपी में मुश्किल पैदा हुई तो भाजपा की 2024 की तैयारियां भी प्रभावित होंगी। राजनीति के जानकार भी इस ओर इशारा कर रहे हैं। कुल मिलाकर तीन कृषि कानूनों को वापस लेने को उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत करने की भाजपा की तैयारी पर किसानों के आंदोलन जारी रखने की बात ने ब्रेक लगा दिया।

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