आखिर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने क्यों छोड़ा मैदान
डोईवाला। क्षेत्रीय विधायक एवं पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत अचानक चुनाव मैदान से क्यों हट गए। उन्होंने ये निर्णय स्वयं लिया या पार्टी ने उन्हें ऐसा करने के संकेत दिए। इन तमाम सवालों पर क्षेत्र में खूब चर्चाएं हो रही हैं। जितने मुंह उतनी बातें और विपक्ष के अपने तर्क हैं।
ऐसा दूर-दूर तक नहीं लग रहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत नामांकन शुरू होने से 48 घंटे पहले चुनाव लड़ने से मना कर देंगे।इसके लिए उन्होंने पार्टी प्रमुख जेपी नडडा को चिटठी भी लिख दी। इसके बाद से चर्चाओं का बाजार गर्म है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत को जानने वालों का कहना है कि वो ऐसे ही मैदान छोड़ने वाले नेता नहीं है।
2002 और 07 में कोईवाला से विधायक रहे त्रिवेंद्र 2012 में रायपुर चले गए। वहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा तो उन्हें लग गया कि डोईवाला ही उनका है। 2014 में हार तय होने के बाद भी वो उपचुनाव लड़ने डोईवाला पहुंचे। मजबूती से चुनाव लड़ा।
हारे और 2017 के लिए जमीन तैयार कर गए। 2017 में डोईवाला से चुनाव जीता और मुख्यमंत्री बनें। इसका डोईवाला क्षेत्र को खूब लाभ भी हुआ। इसके बावजूद उनका चुनाव लड़ने से इनकार करने से हर कोई हतप्रभ है। माना जा रहा है कि उन्हें चुनाव से दूर रखने की पीछे भाजपा की खास रणनीति है।
दरअसल, भाजपा सिर्फ छह माह के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ही प्रोजेक्ट कर रही है। उन्हें के कामों का आगे रखा जा रहा है। साढ़े चार साल के अच्छे-बुरे कामों पर पार्टी पर्दा रखना चाहती है। सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा छह माह के काम दिखाकर पांच साल के लिए सत्ता चाहती है।
त्रिवेंद्र के चुनाव मैदान में होने से लोग उनके कार्यकाल के कार्यों का मूल्यांकन जरूर करते। हालांकि लोग भाजपा से हिसाब तो पूरे पांच साल का मांग रहे हैं।