उत्तराखंड

राजनीतिक दलों को लोकल मीडिया से परहेज

देहरादून। उत्तराखंड के दिल्ली से नियंत्रित राजनीतिक दलों को लोकल मीडिया से परहेज हैं। चुनाव में प्रचार प्रसार पर होने वाले राजनीतिक दलों का शत प्रतिशत बजट दिल्ली बेस्ड चैनल और बड़े अखबारों पर खप रहा है।

राज्य के गठन के बाद से ही दिल्ली से नियंत्रित राजनीतिक दल स्थानीय मीडिया की उपेक्षा करते रहे हैं। सत्ता में रहते हुए दल दिल्ली के मीडिया को मैनेज करने में खूब इनर्जी और धन खर्च करते हैं। चुनाव के समय भी ऐसा होता है। परिणाम लोकल मीडिया हर स्तर पर उपेक्षा झेलता है। हां, राज्य के मुददों को उठाने का जिम्मा लोकल मीडिया ही उठाता है।

राजनीतिक दल बड़े चैनलां और अखबारों को चुनाव में मैनेज कर देते हैं। परिणाम राज्य के असली सवालों का दबा दिया जाता है। ऐसा ही कुछ उत्तराखंड में इन दिनों भी दिख रहा है। मगर, इस बार छोटे अखबार और न्यूज पोर्टल राजनीतिक दलों के मीडिया प्रबंधन का खेल को बिगाड़ रहे हैं।

राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय पत्रकार छोटे अखबारों और न्यूज पोर्टल के माध्यम से मुददों को उठा रहे हैं। इससे चुनाव लड़ रहे बड़े राजनीतिक दलों के प्रत्याशी और उनके समर्थक असहज हो रहे हैं। विकास की झूठी तस्वीर लोग जान पा रहे हैं।

साढ़े चार साल के कार्यकाल को छिपाकर सिर्फ छह माह के कार्यकाल की बातें की जा रही हैं। ऐसा बड़े मीडिया तंत्र के माध्यम से किया जा रहा है। आयाराम गयाराम और टिकटों की खरीदफरोख्त की बातों को भी मीडिया से एक तरह से वॉश करने में राजनीतिक दल सफल रहे हैं।

हां, स्थानीय स्तर पर पत्रकार खबरों के माध्यम से इस पर न केवल रिएक्ट कर रहे हैं। बल्कि जनता तक उत्तराखंड के असली मुददों को दबाने के खेल को जनता तक पहुंचा रहे हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *